बुधवार, 20 जनवरी 2016

हे कान्हा....

हे कान्हा….

हे कान्हा…अश्रु तरस रहें,
निस दिन आँखों से बरस रहें,
कब से आस लगाए बैठे हैं,
एक दरश दिखाने आ जाते…
बरसों से प्यासी नैनों की,
प्यास बुझाने आ जाते…
बृंदावन की गलियों मे,
फिर रास रचाने आ जाते…
राधा को दिल मे रख कर के,
गोपियों संग रास रचा जाते…
कहे दुखियारी मीरा तोह से,
मोहे चरणन मे बसा जाते..
कब से आस लगाए बैठे हैं,
एक दरश दिखाने आ जाते…

Acct- इंदर भोले नाथ…

1090_krishna-black-wallpaper

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here हे कान्हा....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें