ये देश अब नई दिशा की ओर चल पङा है।
  तो समाज का जन-जन लिए आँखो में सपना खडा है॥
  है नया कुछ भी नही, फिर भी नया सब लग रहा है।
  आशाओं के मार्ग में हमे अब नही कोई ठग रहा है॥
मन ये विचलित उङने को बेचैन और बेताब है।
  चिङियों के पंखो में भी जोश लाजवाब है॥
  क्यों ना थाम हाथ उस चिङियाँ का हम भी उङ चलें।
  और ठान ले की ना दबेंगे अब किसी पैरो तले॥
लहरे भी गर्ववान हो सागर से ये कहने लगे।
  होने पर विजय लोकतन्त्र की, आज आँसू क्यो मेरे बहने लगे॥
  सफलता ह्में जो देर से मिली तो क्या,आँसू बहा तिरस्कार ना करो।
  समय आ गया है समय बदलने का,आए हुए समय को नमस्कार करो॥

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें