गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

रावण

रावण

हर वर्ष जलाते है हम सैकड़ो रावण के पुतले
क्या जाने कब असली रावण सच में जल पायेगा !!

इंसान ही इंसान में खोज रहा है इंसान को
क्या हम में कोई पुरुषोत्तम राम बन पायेगा !!

सत्य अहिंसा का पाठ हमको अब याद नही
कैसे जीवन में शांतिमय क्षण मिल पायेगा !!

हर घर में रावण बैठा सीता की घात लागए
जाने कब कोई राम बन उसकी लाज बचायेगा !!

क्या होगा पुतले फूंक-फूंक जब तन-मन मैला हो चला
लाख करो रामलीला, क्या सच में रामपथ चल पायेगा !!

पल पल दुनिया बदल रही,वक्त ने है बदली अपनी चाल
लकीर के हम फ़कीर हुए है, जाने कब ये समझ पायेगा !!

धर्म कर्म के नाम पर शैतानो से हम लुटते आये है
दुनिया हम से सीख रही,जाने खुद कब समझ पायेगा !!

जला सको तो जला दिखाओ अपने अंदर बैठे रावण को
अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष भाव मिटा दो, प्रेम स्वयं जग जाएगा !!

:::— डी. के. निवातियाँ—:::

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here रावण

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें