माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
विरह व्यथित हु, दीन दुखी मै
  अब हार थककर चूर हुआ हूँ
  रखकर अपने पुष्प हाथो को
  मेरे मस्तक फिर से सहला दो !
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
अस्त व्यस्त है, जीवन लीला
  सरदर्द का हर दिन बढ़ता पहरा
  समझ सकती हो तुम मेरी पीड़ा
  मुझको तुम थोड़ा सा सहला दो ! 
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
अफरा तफरी का माहोल बना
  चारो और नर संहार हुआ है
  जिसे देखकर मै घबरा जाता हूँ
  आकर तुम मेरा ढांढस बंधा दो 
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
घर परिवार की चिंता रहती
  रोज़ महंगाई की मार सताती,
  देख कर मन हुआ जाता अधीर
  आकर इस मन को समझा दो !
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
बहुत वक़्त बीता आशा में
  सोता हूँ रातो में जागे जागे
  कब से नही सोया चैन की नींद
  प्यारी थपकियाँ पीठ पर जमा दो ! 
माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
  माँ मुझको फिर लोरी सुना दो, अपनी गोद में मुझे सुला दो !!
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  ——-:::डी. के. निवातियाँ :::——-

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