मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

यादो के पिटारे से ....

यादो के पिटारे से ….

कशमकश से भरी जिंदगी
के समुन्द्र में गोता लगाकर
कभी – कभी खोज लेता हूँ
कुछ हसीं पल बिखरे हुए यादो के पिटारे से !!

प्रत्येक पल को जीता हूँ
भिन्न-भिन्न विधाओ में
व्‍याक्षेप के मध्य से फिर भी
छीन लेता हूँ कुछ पल मुस्कान के पिटारे से !!

बीता हुआ हर एक लम्हा
समा जाता है याद बनकर
छोड़ जाता है अमिट छाप
तन्हाई में फिर खोज लेता हूँ यादो के पिटारे से !!

फलतः जीता हूँ प्रश्नचित्त हो,
नित्य नई उम्मीद और आशाओ में
जीवन के सार का आनद पाने को
रोज मिल ही जाता हा कुछ यादो के पिटारे से !!

समेटे हुए है यथार्थ जीवन का सत्य
जिसमे भरी हुई है, खट्टी, मीठी, कड़वी
कुछ नमकीन भी मन मस्तिष्क के
इस कूड़ेदान से खोजने पर मिल ही जाते है
जीने की उम्मीद दिलाते हसीं पल यादो के पिटारे से !!
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[———–डी. के. निवातियाँ ———]

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