बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

प्राण

हे भगवान!
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

सुख चैन ढूँढते
उस खुशहाल गांव के
ग्रामीणों की तरह
जो आने के एक दुष्ट जादूगर से
हो गए हे बेचैन, परेशान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

उस राजकुमार की तरह
जिसने बंधाई ग्रामीणों की उम्मीद
जो करेगा दुष्टता का अंत
देगा पुनः चैन की नींद
लौटेगा उनका सम्मान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

उन ग्रामीणों और राजकुमार की तरह
जो हैं हैरान
जादूगर तो चित्त है चारों खाने
फिर भी हँसता है, कैसै जाने?
"मरणासन्न हूँ! मार नहीं पाओगे
दूर देश बसे तोते में रखे हैं मेरे प्राण
तुम कैसे पहुँच जाओगे"
हे भगवान!

कहानी ने याद दिलाया
प्राणों को दाना बना
अपने परिंदों को खिलाया
परिंदों की ऊँची उड़ान
आज ढूँढते हैं अपने प्राण
हे भगवान!

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