जज़्बा
  मंज़िलों को क्यों तलाशूँ  मैं
  जब राहें इतनी हसीन हैं
  फ़िज़ा की रंगत फीकी पर गयी
  मेरा तो साया भी रंगीन है 
किस्मत से क्यों हारूँ मैं
  हौंसलों कि जब कमी ही नहीं
  ज़िन्दगी की बाज़ी वो हारा करते हैं
  आसमां रूठा जिनसे ,जिनकी ज़मीं भी नहीं 
हालात से क्यों डरूँ  मैं
  हर पल से मेरी यारी है
  काँटों की चुभन का अलग मज़ा है
  फूलों की जुदा खुमारी है……

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