ग़ज़ल.दौलत पर नही मरती ।
ये दुनियां संगदिल निकली मुहब्बत क्यों नही करती ।
  फ़रेबी है अपनेपन की दौलत पर नही मरती ।। 
चलो तुमको दिखाते है दवाओ की दुकानों में ।
  तड़पते लोग रहते है दवा उनको नही मिलती ।। 
बने मज़दूर बच्चों पर तरस अब हम नही खाते ।
  करे दिन रात मेहनत पर आह उनकी नही थमती ।।  
जहा देखो वही पर अब रिश्वत की वसूली है ।
  न जाने शख्शियत क्या है जेब उनकी नही भरती । 
न जाने कौन सी मिट्टी से बने है लोग दुनिया के ।
  भलाई की परत बेशक़ अब उनपे नही चढ़ती ।। 
यहाँ पर प्यार के भी तो अज़ब किस्से कहानी हैं ।
  हवस बढ़ती ही जाती है कली दिल की नही खिलती ।। 
उजाला नाम दे देकर अँधेरा खूब बढ़ाते है ।
  दीवाली रोज आती पर दिलों के तम नही  हरती ।। 
यहाँ के लोग रोते है खुदी के दर्द से ग़ाफ़िल ।।
  ख़ुशी को देखकर रकमिश” ख़ुशी उनको नही मिलती ।।  
—- R.K.MISHRA
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