क्यूँ तनहा है तू इस भीड़ में, ये मुशाफिर !
  क्या तेरा दिल किसी से टकराया नही ?
  क्या ?
  टकराने से दर्द होगा ?
  अरे !
  इस टकराने से जो दर्द होता है,
  ये नादान मुशाफिर !
  वो दर्द,  दिल के करीब होता है I
  हाँ !
  कभी-कभी इस टकराने से,
  दिल टूटता ज़रूर है I
  मगर तू ही बता ?
  क्या टूटने के डर से हम ,
  नये रिश्ते जोड़ना छोड़ दे ?
  क्या टूटने के डर से हम,
  दिलों मे घर बसाना छोड़ दे ?
-पार्थ
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