शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

क्यूँ तनहा है तू इस भीड़ में ?

क्यूँ तनहा है तू इस भीड़ में, ये मुशाफिर !
क्या तेरा दिल किसी से टकराया नही ?
क्या ?
टकराने से दर्द होगा ?
अरे !
इस टकराने से जो दर्द होता है,
ये नादान मुशाफिर !
वो दर्द, दिल के करीब होता है I
हाँ !
कभी-कभी इस टकराने से,
दिल टूटता ज़रूर है I
मगर तू ही बता ?
क्या टूटने के डर से हम ,
नये रिश्ते जोड़ना छोड़ दे ?
क्या टूटने के डर से हम,
दिलों मे घर बसाना छोड़ दे ?

-पार्थ

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