शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

मात .........

किस्मत की लकीरो का,
खेल अमीरो गरीबो का,
जाने क्यों तुम घबरा रहे हो
किस बात से मात खा रहे हो
गम जरूर कोई जिसको छुपा रहो हो
बे-बात जो तुम इतना मुस्कुरा रहे हो !!

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——::: डी. के. निवातियाँ :::——

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