शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

जुदाई

जुदाई

मेरे जाने के बाद प्रिये
मेरे पदचिन्हों को मत टोहना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
मेल और जुदाई तो
सब किस्मत का खेल है
अपनी किस्मत बुरी समझ के
विधाता को कभी दोष न देना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
कुछ दिन की ये जुदाई ही
लायेगी जिन्दगी की बहार
दरवाजे पर आरती की थाली लिये
बेशब्री से मेरी राह तकना,
मुझे याद कर-कर के प्रिये
आंचल से मुख ढक मत रोना।
-ः0ः-

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