शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

।।ग़ज़ल।।तुम्हारी याद के सदमे ।।

।।ग़ज़ल।।तुमारी याद के सदमे।।

पुराने जख़्म थे फिर भी सहे नाशाद के सदमे ।।
अभी तकलीफ़ देते है कई दिन बाद के सदमे ।।

ये आंशू है बहेंगे ही करू मैं लाख कोसिस पर ।।
गिरेंगे भूल जाउगा तुम्हारी याद के सदमे।।

तुम्हे क्या तुम तो बच निकले किसी महफूज़ ‘साहिल’ पर ।।
मुझे झकझोर जाते है हुये बर्बाद के सदमे ।।

हरारत थी तुम्हे भी पर निकल दरिया से तुम भागे ।।
अकेले ही सहे थे हम तेरी फरियाद के सदमे ।।

उम्रभर आह भर भरके घरौंदा जो बनया था ।।
मिटा थी इश्क की मंजिल ढही बुनियाद के सदमे ।।

न पूंछो है बहुत अच्छा हमारे अश्क़ की कीमत ।।
सहता जा रहा इनकी बड़ी तादाद के सदमे ।।

R.K.M

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