शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

Naval Pal Parbhakar

धरती

मैंने उसको
जब भी देखा,
खिलते देखा
उजड़ते देखा
बहकते देखा
महकते देखा
हंसते देखा
रोते देखा
स्वर्ण सुरभि
छेड़ते देखा
पर इसको
जब………….
कुपित देखा
शक्ति रूप
बदलते देखा
समाहित कर
भूमंडल को
उदर में अपने
धरते देखा ।
-ः0ः-

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here Naval Pal Parbhakar

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें