शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

प्राण

हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण
हे भगवान!

साँसों की डोर यहाँ
साँझ, दोपहर, भोर यहाँ
दूर के हिलोरे
में रहता सदा क्यों ध्यान?
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

दाना यहाँ पानी यहाँ
जीवन की कहानी यहाँ
फोन की घंटियाँ पर
सुनाती हैं दास्तान
खुशियों के इंटरनेट से
आते हैं पैगाम
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

उलझनों को बीच फिर
जिंदा हुई किताबें
किस्से कहानियों के उस
जादूगर की बातें
दूर तोते में जो
रखता था अपनी जान
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

ये सच है क्या?
जीवित देह की क्या विभाजित है जाँ?
जीवन आधार जहाँ
क्या प्राण हैं वहाँ?
ये किसके जादू टोने?
ये कैसा है कमाल?
हे भगवान!
सच बता
डाले कहाँ मेरे प्राण

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