बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल.कल न लौटेगा दुबारा ।

ग़ज़ल.कल न लौटेगा दुबारा।

क़द्र उसकी क्यों करें हम जिंदगी से जो है हारा ।
चल रहे है ठोकरों पर आज हम भी बेसहारा ।।

हारने का ये तो मतलब हैं नही क़ि टूट जाओ ।
टूटने के दर्द का तुम कुछ करो एहसास प्यारा ।

मिल सकेगी न कभी मंजिल उसे तुम मान लेना ।
जो निकल दरिया से भागा बुझदिलो सा कर किनारा ।।

उम्र भर जिसने न समझा उम्र की तरकीबिया को ।
उम्र ढल जायेगी उसकी क्या करेगा बन बेचारा ।।

ख़्वाब सपने जो सजायें चल उसे कर दे हक़ीक़त ।
वक़्त गुजरा न मिलेगा कल न लौटेगा दुबारा ।।

सोचने की उम्र तो अब है नही मेरे दोस्त रकमिश” ।
कब उड़ोगे हौसलों के पंख का लेकर सहारा ।।

—R.K.MISHRA

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