वष में करती रात्रि
रात्रि का तम
  दूर करता हुआ
  चंदा का प्रकाश
  मौन साधे गलियों की
  चुप्पी तोड़ती हुई
  हवा की सांय-सांय
  ओर पत्तों की
  हंसी किलकारियां
  एकाएक………………
  आंखों को
  सम्मोहित करती है
  दूर से आती हुई
  तालाब के किनारे से
  मेंढकों की टर्राने की आवाज
  षबनम की चंद बूंदों से
  तृप्त हुई धरा के गर्भ में
  पलने वाली नटखट
  भंभिरियों की हृदय विदीर्ण
  कानों को छेदने वाली
  कर्कषता पूर्ण आवाज
  एकाएक…………………..
  मन को
  अपने वश में करती है।
        -ः0ः-

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