बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल.प्यार का बाज़ार है .

.ग़ज़ल.प्यार का बाज़ार है .
R.K.MISHRA

तुमने सजा रखा है जो ये प्यार का बाज़ार है .
ये डुबो देगा तुम्हे भी दिल तेरा गद्दार है .

तोड़ दिल को जो गये तुम वक्त से पहले मेरा .
प्यार के काबिल न छोड़ा हो गया बेकार है .

है पता तुमको नही क्या हुआ होगा यहा .
सर्द मौसम गम भरे अब अश्क़ की भरमार है .

सह अकेले मैं रहा हूँ दर्द की वो सलवटे .
ढल रही अब चांदनी चाँद भी लाचार है .

फ़िक्र मत कर बद्दुआये मैं कभी दूँगा नही ..
पर तेरे इस संगदिल पर मेरा धिक्कार है .

रूप तेरा भी ढलेगा एक दिन तुम देख लेना .
फ़ैसला होकर रहेगा बस वक्त का आसार है..

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