कोसी का श्राप
एकाएक ……………
  बरसात के रूक जाने के बाद
  उत्तर दिशा से उमड़ पड़ा।
  पानी का एक गुब्बार
  ओर पानी के लुढकते हुए
  लोढों से ………….
  तबाह इस कदर हो जाता है।
  वह आपदा का मारा हुआ
  कोसी के श्राप से ग्रसित बिहार
  करोड़ो का सामान
  बस निगल जाता है।
  मुंह खोलकर अपने अन्दर
  उसने कुछ भी ना देखा
  चाहे जीव हो, या पेड़ विशाल
  कोसी का यह तांडव नृत्य
  चीर गया धरती का सीना
  अपरिचित वेग ने जैसे
  भर लिया आगोस में अपने
  लेकर जीवों को अपनी गोद में
  दुलारता-फटकारता
  कभी प्रेम के अथाह सागर में
  डुबोता ओर उबारता
  समाहित कर गया
  वह कोसी का पानी
  नन्हें छोटे-बडे़-बूढे़
  ओर कुछ मासूमों की जवानी
  यही तो हर साल की
  उस निर्दयी, निर्लज्ज कठोर
  भयावही कोसी की कहानी ।
         -ः0ः- 

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