ग़ज़ल(खुदा जैसा ही वह होगा)
वक़्त  की साजिश समझ कर, सब्र करना सीखियें
  दर्द से ग़मगीन वक़्त यूँ  ही गुजर जाता है 
जीने का नजरिया तो, मालूम है उसी को वस
  अपना गम भुलाकर जो हमेशा मुस्कराता है 
अरमानों के सागर में ,छिपे चाहत के मोती को
  बेगानों की दुनिया में ,कोई अकेला जान पाता है
शरीफों की शरारत का नजारा हमने देखा है
  मिलाता जिनसे नजरें है ,उसी का दिल चुराता है
ना  जाने कितनी यादों  के तोहफे हमको दे डाले
  खुदा जैसा ही वह  होगा ,जो दे के भूल जाता है
मर्ज ऐ इश्क में बाज़ी लगती हाथ उसके है
  दलीलों की कसौटी के ,जो जितने  पार जाता है    
ग़ज़ल:
  मदन मोहन सक्सेना

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