।।ग़ज़ल।।मेरा क़िरदार पढ़ लोगे।।
                              R.K.MISHRA
मेरी खामोशियो में भी मेरा इज़हार पढ़ लोगे .
  कभी दिल से जरा समझो मेरा किरदार पढ़ लोगे . 
न साहिल है न मंजिल की मुझे परवाह रहती है .
  मग़र है आँख का दरिया छलकता प्यार पढ़ लोगे . 
जरा तुम रोककर कर देखो हमारे आँख के आंशू .
  झलकती झील में अपना अलग संसार पढ़ लोगे.. 
अभी तक बात करते हो हमेसा ही इशारों से .
  जरा आग़ोश में आओ दिली झंकार पढ़ लोगे .  
महज़ ये फ़ासले ही है जो हमको दूर करते है ..
  यकीनन पास आये तो मेरा इनकार पढ़ लोगे ..
अग़र है शौक तुमको तो जाते हो चले जाओ .
  ज़रा फिसले मुहब्बत में ग़मो की मार पढ़ लोगे .. 
नही होते है पैमाने किसी से प्यार करने के ..
  खुली दिल की किताबो में लिखा एतबार पढ़ लोगे.. 
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