शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

आ हमतुम साथ चले (ग़जल)

तेरी जुल्फोँ कि छाँव में ज़िंदगी की शाम ढले!
चाहत की कच्ची ड़गर में आ हमतुम साथ चले !!

तेरी चाहत की खुमार चढी हैं सुब्हो शाम,
क्यों हों इस पागल से खफ़ा,आ लग जा गले !

अश्क बहाए हैं तन्हा,तेरी यादों में बहुत,
इंतज़ार में कहीं मर न जाऊ तड़प के अकेले !

तू भेज पुरवा संग सुरभि प्यार की मेरी आँगन,
मन नहीं लगता गुलिस्ता में भी आकाश तले !

दुरियाँ क्यों,तुमसे हैं जन्मों-जन्मों का बंधन साथी,
तू हमसफ़र दिल किया सदा के लिये तुम्हारे हवाले!

…Dushyant patel [कृष]

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here आ हमतुम साथ चले (ग़जल)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें