शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।

ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।।

मैं एक दिया था मिटा दिया गया हूँ .
उनकी ख़ैरात था लुटा दिया गया हूँ .

हौसला रखता था ये दिल मुहब्बत का .
मैं एक मुकाम था मिटा दिया गया हूँ .

अब वही लिखता हूँ तन्हा के आंशुओं से .
मुहब्बत में जो भी सिखा दिया गया हूँ

तब तो मेरे नाम की तारीफ होती थी .
अब बदनाम इशारों से दिखा दिया गया हूँ .

दर व् दर की ठोकरों से आज साहिलों पर .
बेकार आंशुओं सा गिरा दिया गया हूँ .

अब चर्चाओं में मेरा जिक्र नही होता .
पुरानी यादों सा मैं भुला दिया गया हूँ .

मुहब्बत की एक लम्बी दास्ताँ था मैं .
आज बेनाम ख़त सा जला दिया गया हूँ .

मिलता था बेकरारियो में भरोशा और हौंसला .
रुसवाइयों में शराब ऐ गम पिला दिया गया हूँ .

सकून आ गया जब दर्द बढ़ गया हद से .
अब ग़मो के मंजर में डुबो दिया गया हूँ .

रकमिश” मेरी जिंदगी मुहब्बत ऐ मिसाल थी .
अब बदनाम और बुझदिल बता दिया गया हूँ .

—-R.K.MISHRA

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here ग़ज़ल.मैं एक दिया था बुझा दिया गया हूँ ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें