''कारे कजरारे बादल''
  कारे कजरारे बादल ने
  पीली पीली सरसों से
  कुट्टी करने की ठानी है । 
हरी दूब की फुनगियों पर
  ओस की बूंदों ने
  करली अपनी मनमानी है
  कुट्टी करने की ठानी है ।  
प्यास हुई अब वासंती
  रंग-बिरंगे फूलों पर
  तितलियों की छेड़खानी है
  कुट्टी करने की ठानी है । 
स्वप्न हुये मृदु मलयानिल
  मकरंद सुगंध समीर बहे
  रतनारे नैनों की सानी है
  कुट्टी करने की ठानी है । 
 बांध गए हिरनी के पावों घुंघरू
  दर्पीले मौसम के हाथों ने
  यह जीवन आनी जानी है
  कुट्टी करने की ठानी है । 

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