शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

आँसू है कुछ ऐसा पानी

आँसू है कुछ ऐसा पानी

आँसू है कुछ ऐसा पानी
गीतों में है झर झर बहता
भारी मन मेरा भी जैसे
पलकों में है सब कुछ कहता

तोड़ रहा शब्दों के पत्थर
बहता आँसू भीतर भीतर
अर्थ वही है, दर्द वही है
हर आँसू है अक्षर अक्षर

लिखना चाहूं लिख न सकूं तो
आँसू मेरा मुझपर हँसता
आँसू है कुछ ऐसा पानी
गीतों में है झर झर बहता

नाव नहीं, पतवार नहीं है
दर्द भरी मँझधार मिली है
आँधी ले हर आह उठी है
आँसू में पीड़ा उभरी है

व्यथा वेदना की लहर तले
पंक्ति बद्ध हो आँसू बहता
आँसू है कुछ ऐसा पानी
गीतों में है झर झर बहता

तारों से कुछ कंपन लेकर
काँटों से पीड़ा को बुनकर
हर आँसू जो बनता नश्वर
रचता जाता गीत निरंतर

क्षण-भंगुर पीड़ा का झरना
हरदम गीतों में है बहता
आँसू है कुछ ऐसा पानी
गीतों में है झर झर बहता

मन कहता उस पार चलूं मैं
दर्द उठे, चुपचाप सहूं मैं
बहता आँसू रोक सकूं मैं
नम पलकों का मीत बनूं मैं

गीत लिखूं कुछ ऐसा जिसमें
दर्द भरा अक्षर हो हँसता
भारी मन मेरा भी ऐसा
आँसू बनकर सब कुछ कहता

आँसू है कुछ ऐसा पानी
गीतों में है झर झर बहता
—- ——- —- भूपेंद्र कुमार दवे

00000

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here आँसू है कुछ ऐसा पानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें