मंगलवार, 11 अगस्त 2015

अंतिम आराधना

गम तुम्हें इतना दिया के
तुम मुझे छोड़ने को मजबुर हो
दर्द तुम्हें इतना मिला के
मेरे पास आने को डरते हो
मैं जो था हालातो का मारा
क्या कहुँ मैं अब तुमको
चली जाओ भी तो जाओ तुम
पर मैं पहले छोड़ पाऊ न तुमको
तुम खुश रहो
ये दुवा रहेगी मेरी हर रोज
वापस कभी लौत भी आओ तो
दरवाजा खुला पाओगी मेरी
क्या थे दिन वो
रंगीन हमारी
याँद करके रोता हुँ जो मैं
अभी विलखने से क्या फायदा
जो न होना था
वो अन्होनी तो हो ही गया आखिर
क्या ऐसा हो न सकता
नये सिरे से शुरू करे ये जिंदगी
भूल जाये सब कुछ
के तुम्हारे मेरे बीच में भी कोई था
कुछ था…..
जो हमारे जिंदगी में
दरारे पैदा कर गयी
भूल जाओ न सब
मैं तो हुँ एक इन्सान ही न
मैंने तो महसूस किया तुमको
तुम्हारी जगह खुद को रखकर
तुम भी तो समझो न हमें
मेरी जगह तुम खुद रहकर
दो दिन की ही तो है ये जिन्द्गी
आखिर ऐसा भी क्या गिले क्या शिकवे
मंजिल तो सबकी एक ही है
आ जाओ न तुम पास हमारे
मेरा तुमसे है ये अंतिम आराधना…….!

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here अंतिम आराधना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें