गम तुम्हें इतना दिया के
  तुम मुझे छोड़ने को मजबुर हो
  दर्द तुम्हें इतना मिला के
  मेरे पास आने को डरते हो
  मैं जो था हालातो का मारा
  क्या कहुँ मैं अब तुमको
  चली जाओ भी तो जाओ तुम
  पर मैं पहले छोड़ पाऊ न तुमको
  तुम खुश रहो
  ये दुवा रहेगी मेरी हर रोज
  वापस कभी लौत भी आओ तो
  दरवाजा खुला पाओगी मेरी
  क्या थे दिन वो
  रंगीन हमारी
  याँद करके रोता हुँ जो मैं
  अभी विलखने से क्या फायदा
  जो न होना था
  वो अन्होनी तो हो ही गया आखिर
  क्या ऐसा हो न सकता
  नये सिरे से शुरू करे ये जिंदगी
  भूल जाये सब कुछ
  के तुम्हारे मेरे बीच में भी कोई था
  कुछ था…..
  जो हमारे जिंदगी में
  दरारे पैदा कर गयी
  भूल जाओ न सब
  मैं तो हुँ एक इन्सान ही न
  मैंने तो महसूस किया तुमको
  तुम्हारी जगह खुद को रखकर
  तुम भी तो समझो न हमें
  मेरी जगह तुम खुद रहकर
  दो दिन की ही तो है ये जिन्द्गी
  आखिर ऐसा भी क्या गिले क्या शिकवे
  मंजिल तो सबकी एक ही है
  आ जाओ न तुम पास हमारे
  मेरा तुमसे है ये अंतिम आराधना…….!
मंगलवार, 11 अगस्त 2015
अंतिम आराधना
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