शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

नहीं तो जाने क्या होगा

पहचानें इक दूजे को हम,
ऐसे ही इंसान चाहिए .
मैं मेरे से उठ जाएँ ऊपर,
कुछ ऐसे होने काम चाहिए.
कितनी गोदें उजड़ गयीं
लाल कितने शहीद हो गए
मैं और मेरा कहते २
जाने क्या क्या खेल हो गए
लेकर आड़ धामों की जब
ज़हर नफरतों का बटने लगे
इंसाफ इंसाफ के नारों पे
इंसानियत बलि चढ़ने लगे
आंसू भरी आँखों में
जब खून भी उतरने लगे
समझ लेना
अन्त अब दूर नहीं
जाने खेल कैसा हम
खेल रहें हैं
दहलाती कुदरत को भी
झेल रहें हैं
सहलाबों की भी होड़ लगी है
धरती डुग मग डोल रही है
इंसानो से कुछ बोल रही है
लावा कहीं जो फट पड़ा
तो परलय का मंज़र क्या होगा
जिनके दम पर इतरातें हैं हम
उन बम्ब विस्फोटों का क्या होगा
जिस धरती मां पर पनपे हम
ऊस धरती माँ का क्या होगा
है समय अभी संभल जाओ
नहीं तो जाने क्या होगा
सबक इंसानियत का भूल गए
तो दिन ऐसा भी आएगा
इक दूजे का पीकर खून
इंसान बहुत इतरायेगा
शर्मसार होगी इंसानियत
आस्मां केहर बरसायेगा
है समय अभी संभल जाओ
नहीं तो जाने क्या होगा

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