कविता में तोप चलाओ,
  पर बेरोजगारी के खिलाफ,
  तलवारें भांजो पर भुखमरी के खिलाफ,
  डंडे बरसाओ पर स्त्री की अस्मत के खातिर ,
  भाई कवि मित्र,
  पर अपनी कविता में,
  युद्ध के लिए देशों को न उकसाओ ,
  इसकी कीमत बहुत भारी होती है,
  विधवाओं की सूनी मांग ,
  समाज के लिए रात कारी होती है,
  शब्द शिल्पी हो तुम,
  युद्ध शिल्पी न बनो,
  कविता को बनाओ,
  नये सपनों,
  नये समाज को गढ़ने का आधार,
  जिसमें हो समानता, बराबरी और भाईचारा,
  रहे यही प्रयास तुम्हारा,
  बन न पाये कविता कभी,
  किसी युद्ध का हथियार,
  किसी सिरफिरे की वहशी सोच का औजार,
  28/8/2015
शनिवार, 29 अगस्त 2015
मित्र कवि युद्ध शिल्पी न बनो
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें