‘नारी’
  नारी है तू तेरे हाथों देश का उत्थान है
  धर्म से और कर्म से करती तू कल्याण है
  नारी है तू —-
  तेरे सीने में चलती
  है प्रलय की आंधियां
  धमनियों में भी बहती
  है मुक्ति की बिजलियाँ
  विद्रोह की ज्वाला है अंतर, इक नया तूफ़ान है
  धर्म से और कर्म से करती तू कल्याण है
  नारी है तू —-
  तुझमें साहस है मिटादे
  दुष्टों के साम्राज्य को
  तुझमें साहस है बचाले
  वज्र बनकर आज को
  तू है जननी तेरे हाथों देश का निर्माण है
  धर्म से और कर्म से करती तू कल्याण है
  नारी है तू —-
  तू मिटादे असभ्यता की
  सड़ी-गली इन रूढ़ियों को
  काट दे ज़ुल्मो सितम और
  दासता की बेड़ियों को
  सभ्यता की नींव रखदे , प्रगति का सोपान है
  धर्म से और कर्म से करती तू कल्याण है
  नारी है तू —-
  जज्बातों भावनाओं से
  विपदाओं से न हारना
  भय के सागर में उतर
  कठिनाई से ना भागना
  दिव्य ज्योति से तेज पुंज से मुक्ति का संधान है
  धर्म से और कर्म से करती तू कल्याण है
  नारी है तू —-
  शकुंतला तरार 
शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
गीत- नारी-शकुंतला तरार
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