खुद को कहाँ पहुंचाया
  करो विचार तनिक इतना
  क्या खोया क्या पाया !!
विकास की होड़ में बढ़ते गए
  खुद की पहचान बढ़ाया !
  या खो गए पाश्चात्य के धुन में
  अपने ही मूल्यों को गंवाया !! 
बहुत पायी उच्च शिक्षा हमने
  अंग्रेजी को अपनाया !
  पर भूल गए शायद अपनी भाषा
  हिंदी का अस्तित्व घटाया !!
खूब सीखा हमने रहना सूट बूट में
  विदेशी पोशाकों को अपनाया !
  भूल गए क्यों अपनी माटी की खुसबू
  परदेश में रहना सबको भाया !!
घने हुए आविष्कार दुनिया में यंहा
  हमने भी जलवा दिखलाया !
  पर सोचो कितने दूर हुए अपनों से हम
  छोड़ परिवार एकल अपनाया !!
आपा धापी की इस दुनिया में
  संस्कारो को भुलाया !
  नव पीढ़ी को हम के देकर चले
  कभी इसका ख्याल आया !!
आजादी से अब तक हमने
  खुद को कहाँ पहुंचाया !
  करो विचार तनिक इतना
  क्या खोया क्या पाया !!
  !
  !
  !
  मूल रचना ……( डी. के. निवातियाँ )

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