{{चन्दन की लकड़ी }} चन्दन के पेड़ से कटी जंगल से निकल सुगंध बिखेरती सहसा आई घडी बिछडन की कुछ को ले गया लकड़हारा आये भक्त कुछ राम, कृष्ण के कुछ लोगो का दल दूकान पर था आया देखो “संयोग” इन टुकड़ो का नियति कैसी लिखी किस तरह बिता जीवन अब तुम हाल सुनो  
  
  कुछ लकडिया बाजार चली
  किस शाख के भाग्य क्या लिखा,
  किस भाग के किस्मत क्या ठनी !
  दूकानदार की रोज़ी का सबब बनी
  सजी थी दूकान में अपनी भाग्य का
  बाट जोहती अंके टुकड़ो में थी बटी !!
  कुछ खरीद ले गया पुजारी
  जाकर मंदिर में थी वो घिसी
  चढ़ी शिवलिंग फिर माथे पर बन तिलक सजी !  
  जाकर वो मशीनो में थी कटी
  नक्काशो ने फिर उसे तराशा
  तब जाकर माला में थी गुथी !
  कुछ पीर पैगम्बर के साथ चली
  ले गए चंदन के मणको की माला
  प्रभु स्मरण के नाम पर थी मिटी !!
  अश्रु बहते नयनो में शौक था छाया हुआ
  लेकर अपने संग बाकी चन्दन के टुकड़े
  शव का अंतिम संस्कार करने चला  !!  
  कल थी हिस्सा आज वो “शव दाह” के लिए चली
  चढ़ा दी गयी घी सामग्री के संग चिता की वेदी पर
  मिट गयी आज वो आग में धूं  धूं कर जल उठी !!
  एक ही अंश पर क्या क्या बीती बात सुनो
  अलग-2 टुकड़ो की किस्मत भिन्न कैसे बनी
  कोई माथे सजे………….!!
  कोई हाथोे सजे ………..!!,
  कोई आग में थी जली ……………………..!!
  कोई आग में थी जली ……………………..!!
  कोई आग में थी जली ……………………..!!
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  रचनाकार ::–>>> [[ डी. के. निवातियाँ ]]
शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
संयोग ....... (अंश पाँच )
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