शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

संयोग ....... (अंश पाँच )

    1. संयोग (अंश पाँच )

      {{चन्दन की लकड़ी }}

      चन्दन के पेड़ से कटी
      कुछ लकडिया बाजार चली
      किस शाख के भाग्य क्या लिखा,
      किस भाग के किस्मत क्या ठनी !

      जंगल से निकल सुगंध बिखेरती
      दूकानदार की रोज़ी का सबब बनी
      सजी थी दूकान में अपनी भाग्य का
      बाट जोहती अंके टुकड़ो में थी बटी !!

      सहसा आई घडी बिछडन की
      कुछ खरीद ले गया पुजारी
      जाकर मंदिर में थी वो घिसी
      चढ़ी शिवलिंग फिर माथे पर बन तिलक सजी !

      कुछ को ले गया लकड़हारा
      जाकर वो मशीनो में थी कटी
      नक्काशो ने फिर उसे तराशा
      तब जाकर माला में थी गुथी !

      आये भक्त कुछ राम, कृष्ण के
      कुछ पीर पैगम्बर के साथ चली
      ले गए चंदन के मणको की माला
      प्रभु स्मरण के नाम पर थी मिटी !!

      कुछ लोगो का दल दूकान पर था आया
      अश्रु बहते नयनो में शौक था छाया हुआ
      लेकर अपने संग बाकी चन्दन के टुकड़े
      शव का अंतिम संस्कार करने चला !!

      देखो “संयोग” इन टुकड़ो का नियति कैसी लिखी
      कल थी हिस्सा आज वो “शव दाह” के लिए चली
      चढ़ा दी गयी घी सामग्री के संग चिता की वेदी पर
      मिट गयी आज वो आग में धूं धूं कर जल उठी !!

      किस तरह बिता जीवन अब तुम हाल सुनो
      एक ही अंश पर क्या क्या बीती बात सुनो
      अलग-2 टुकड़ो की किस्मत भिन्न कैसे बनी
      कोई माथे सजे………….!!
      कोई हाथोे सजे ………..!!,
      कोई आग में थी जली ……………………..!!
      कोई आग में थी जली ……………………..!!
      कोई आग में थी जली ……………………..!!
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      रचनाकार ::–>>> [[ डी. के. निवातियाँ ]]

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