।।ग़ज़ल।।मुझे मन्जूर नही।।
तू मेरी जन्नत है पर तेरा कोई कसूर नही ।।
  मैं हाथ रख दूँ ,तू जल जाये ,मुझे मंजूर नही ।।  
कसूर ख़ुदा का है ,कोई तो नाम देता इस रिश्ते को ।।
  मेरा दिल ,मेरी आँखे ,मैं खुद, भी बेक़सूर नही 
फ़िक्र मत कर ,कोई गम नही ,उफ़् तक न करूँगा ।।
  मैं खुद ही जल जाऊँगा वो दिन दूर नही ।।  
गुनाह किसी का भी हो ऐ ख़ुदा तू ही फैसला कर ।।
  मैं तो बेबस हूँ पर तू तो इतना मज़बूर नही ।।   
परवाह नही, तू मांग ले जिंदगी भी मुस्करा के ।।
  अपने वादे से मुकर जाऊ ,ये मेरा दस्तूर नही ।। 
…….R.K.M
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