गुरुवार, 27 अगस्त 2015

पत्थर तराशते रहे ..........!!

    1. हम दिखावे के उजालो में,
      तन्हाई के लिए अँधेरे तलाशते रहे !
      ख्वाबो में देखी तस्वीर को,
      हकीकत में ढालने के लिए पत्थर तराशते रहे !!

      ज़माना लूटता रहा,
      खुशियो से आबरू – ऐ – इंसानियत !
      अपनी शान बचाने में,
      हम शर्म की चादर से खुद को ढापते रहे !!

      बेईमानी की शरद रातो में,
      वो दौलत की आग से हुए पसीना पसीना !
      अपना हाल कुछ यूँ था,
      ईमानदारी कीलौ में भी थर्र थर्र कापते रहे !!

      लालच की लालसा में
      ज़माना बेदर्द है कितना मालूम जब हुआ !
      देखा रिश्तो का क़त्ल होते,
      लोग अपनों को ही गाजर मूली सा काटते रहे !!

      क्या करोगे जानकार “धर्म”
      जमाने का दस्तूर बड़ा निराला होता हैं !
      जिन्हे हक़ दिया अपना,
      वो ही नश्तर चुभाकर, मरहम लगाते रहे !!

      हम दिखावे के उजालो में,
      तन्हाई के लिए अँधेरे तलाशते रहे !
      ख्वाबो में देखी तस्वीर को,
      हकीकत में ढालने के लिए पत्थर तराशते रहे !!
      !
      !
      !
      डी. के. निवातियाँ __!!!

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