चलते चलते थम से गए
                  पेड़ों की छाँव में
  पांव ठिठक कर रह गए
                  यादों के गाँव में
  कदम भी मद्धम हो गए
                   रफ़्तार अपनी छोड़ कर
  इक इक नज़ारा याद आया
                   बढ़ते हुए हर मोड़ पर
  याद आया फिर वोः बालपन
                   दिल वोःपुरसुकून सा
  बचपन की कुछ सहेलियां
                    कुछ  यौवन की मस्त पहेलियाँ
  आयी याद खिलन वोः  धूप की
                     और जाड्डे की सर्द  रातें भी
  पंख लगाये  उड़ता था मन
                      हल्का हो बादलों की तरह
  न सीमाओं का ही बोध था
                     न थीं कोई पाबंदियां
  सुहाना था बहुत वोः बचपन का आलम
                      बेफिक्र मन  खिलखिलाने का आलम
  ताज़ा हैं वोः यादें आज भी
                      जैसे कल की ही तो बात हो
  छिटकी  हुई सी चांदनी  और
                       और तारों  भरी वोः रात हो
शुक्रवार, 21 अगस्त 2015
यादें
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