रविवार, 23 अगस्त 2015

मेहरवाँ सितारों से सजी तेरी दामन, दामन से झलकता तेरी नूर, कमबख्त दिल को कैसे समझाऊ, ये तो आदत से है मजबूर, की तेरे गेसुओं से खेलूँ, तेरे काजल को निहारूँ, की तेरे आगोश में आ कर, खोल दूँ अपने दिल के दरबाजे, समेट लूँ अपने बाँहों में तुझे, डूब जाऊँ तेरे निगाहों के समंदर में, मै तो एक आशिक हूँ,चाहूँ तुझे, जीवन के उस छोर तक, ना तेरे सिबा कोई और हो, चाहे और भी कोई दौर हो, तू रहमत कर खुदा से, मेरी आरजू है तुमसे, यूँ हीं निगाहें बंद रख, निहारूं तुझे ता उम्र तक । संजीव कुमार झा ६ अगस्त २०१५

Share Button
Read Complete Poem/Kavya Here मेहरवाँ सितारों से सजी तेरी दामन, दामन से झलकता तेरी नूर, कमबख्त दिल को कैसे समझाऊ, ये तो आदत से है मजबूर, की तेरे गेसुओं से खेलूँ, तेरे काजल को निहारूँ, की तेरे आगोश में आ कर, खोल दूँ अपने दिल के दरबाजे, समेट लूँ अपने बाँहों में तुझे, डूब जाऊँ तेरे निगाहों के समंदर में, मै तो एक आशिक हूँ,चाहूँ तुझे, जीवन के उस छोर तक, ना तेरे सिबा कोई और हो, चाहे और भी कोई दौर हो, तू रहमत कर खुदा से, मेरी आरजू है तुमसे, यूँ हीं निगाहें बंद रख, निहारूं तुझे ता उम्र तक । संजीव कुमार झा ६ अगस्त २०१५

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें