तुलसी दास ने चौपाई लिखा ,
  कबीर ने साखी सुनाई।
  जो होगा और हो रहा ,
  सच्ची दिया बतलाई ।।  
एक सगुणी दूजा निर्गुणी ,
  दोनों ही राम को माने।
  कर्म पूजा और मानवता को ,
  सच्ची भक्ती जाने।। 
एक ने घर-वार छोड़ा ,
  राम से अपना नाता जोड़ा।
  दूजा गृहस्ती में ,
  सन्यासी जीवन बिताई।। 
एक काल कि विवेचना दे ,
  दूजा समाज कि सुचना दे।
  जन जस के तस रहें ,
  सुन दोहा साखी चौपाई।। 
जन इनकी जयंती मनाए ,
  कबीर पंथी कहलाए।
  इनके ज्ञान और पंथ को ,
  सब ने दिए भुलाई।। 
कहे नरेन्द्र सुनो ज्ञानी ,
  न बनो तू अभिमानी।
  कर्म-धर्म से नाता जोड़ो ,
  मानवता को न छोड़ो।। 
अगर तुम इन्हें जानते हो ,
  अपना गुरू मानते हो।
  आडम्बर से बाहर निकालो ,
  इनके पंथ को लो अपनाई।। 

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