मन का पंछी
मन का पंछी दूर गगन में
  खुशियों से भर पुलक रहा है
  मन का पंछी हो ओ ओ ओ
  मन का पंछी
1-सुधियों का कोलाहल और
  तारों का रैन बसेरा है
  नागफनी के झुरमुट जैसा
  सपना तेरा मेरा है
  तो प्यार का सागर छलक रहा है
  वक़्त जो पल-पल सरक रहा है
  खुशियों से भर पुलक रहा है 
2-विश्वासों की दुनिया खंडित
  उच्छवासें क्यों महिमा मंडित
  उलझन जैसे गहरी खाई
  सुलझाने को मचल रहा है
  तो उलझन-उलझन सुलझ रहा है
  वक़्त जो पल-पल सरक रहा है
   खुशियों से भर पुलक रहा है
  शकुंतला तरार 

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