बुधवार, 19 अगस्त 2015

गीत- शकुंतला तरार-मन का पंछी

मन का पंछी

मन का पंछी दूर गगन में
खुशियों से भर पुलक रहा है
मन का पंछी हो ओ ओ ओ
मन का पंछी

1-सुधियों का कोलाहल और
तारों का रैन बसेरा है
नागफनी के झुरमुट जैसा
सपना तेरा मेरा है
तो प्यार का सागर छलक रहा है
वक़्त जो पल-पल सरक रहा है
खुशियों से भर पुलक रहा है ||

2-विश्वासों की दुनिया खंडित
उच्छवासें क्यों महिमा मंडित
उलझन जैसे गहरी खाई
सुलझाने को मचल रहा है
तो उलझन-उलझन सुलझ रहा है
वक़्त जो पल-पल सरक रहा है
खुशियों से भर पुलक रहा है ||
शकुंतला तरार

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