कान्हा को कोजते मेरे नैन,
  बिन देखे उसे नही होता चैन।
रैना बीती जाये खाये और सोये,
  कान्हा की मस्ती बस है खोये।
रासलीला है कान्हा ने रचाई,
  मस्त होना भूल गया हू,
  बस नन्यानवे का फेर हो गया हू भाई।
कान्हा तो सुना रहा है बान्सुरी दिन और रात,
  कब जाने इस भेजे मे आयेगी यह बात।
बान्सुरी पुकारती तो है,दिल को बहलाती तो है,मोहक लगती तो है,
  परन्तु ना जाने कौन सी लहर आकर सब झन्झो्रर्ती तो है।
कान्हा को मेरा सखी सन्देश दे आना,
  राह मे हम भी है बस पुकार कर आना,
  भक्ती मे क्या रह गयी कमी दूर उन्हे है करनी,
  हमे तो अभी तक नही आ रही अपनी गागर भरनी।
सन्देश कान्हा को है इतना पहुन्चाना,
  बस करो अपने भक्तो को और तरसाना।

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