शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

मंजिल की तलाश (कविता)

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

मंजिल की तलाश (कविता)

मंजिल की गर तलाश है साथियों ,
रुको मत ! बस कदम बढाते चलो .
मगर पथ पर गिरे असहायों को भी ,
उठाकर अपने साथ ले कर चलो .

माना की राहें हैं तुम्हारी कांटो से भरी ,
पगडण्डीयां है घने तिमिर से भरी ,
होंसले कर बुलंद निराशाओं में भी ,
आशाओं का दीप जलाते चलो .

दिल में हो लगन यदि सच्ची ,
तो पत्थर भी पिघल जाते हैं.
हो बुलंद हिम्मत इंसान की ,
तो तारे ज़मीं पर उतर आते हैं.
आत्म-विश्वास की धार को तेज कर के चलो .

कौन सी ऐसी चीज़ है दुनिया में दुर्लभ ,
इंसा कर ठान ले तो सब-कुछ है सुलभ .
सिकंदर ने तो जीता था हिंसा से जहां को .
तुम भी प्रेम से जीत सकते हो जहां को .
जोत से जोत नेह की दिलों में जलाते चलो.

वो जवानी जवानी नहीं जो देश पर ना मिटे,
इसकी आन की खातिर कोई सर ना कटे .
जवानी तो वोह है जो जान कुर्बान करे,
इसके सदके हर हसरत औ अरमान करे.
मिटाकर खुदी को देश की शान बढाते चलो .

देश की खुशिया व् समृद्धि है दौलत हमारी ,
इसकी तरक्की में ही तरक्की है हमारी ,
इसके नाम को ,आन को शिखर पर पहुंचाना ,
सही मायेने में मंजिल यही है हमारी .
अपने वतन को ही अपनी जिंदगी मानते चलो.

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