गुरुवार, 27 अगस्त 2015

!! जीवन गाथा !!

    1. जी गया जिंदगी उमभर
      मगर जीना नही आया,,!
      पी गया जहर, अमृत जानकर,
      मगर पीने का ढंग नहीं आया..!!

      जिंदगी का ये सफर
      कुछ इस तरह से बिताया !
      पाकर अपनों का प्यार
      अपना बचपन था खिलखिलाया !!

      कब बीत गया बचपन
      अपनत्व की ममता के बीच भुलाया !
      घर से निकला बहार,
      तालीम की दुनिया में कदम बढ़ाया !!

      भूला मुस्कुराने की अदा,
      मुखड़े में अब एक कसाव आया !

      हुआ दीदार नए चेहरों का
      जिंदगी में अनुभव का मौका आया !!
      कुछ को हुई घृणा मुझसे,
      कुछ ने दोस्त बनकर मुझे अपनाया !!

      पल-पल बढ़ते-बढ़ते यूँ ही,
      आसमा छूने का ख्याल मन में आया !
      तन भी खोया, मन भी खोया,
      अब तो रातो को भी सोना न भाया !!

      जूझ रहा था कश्मकश में जब
      आयु किशोर से जवानी में कदम बढ़ाया !
      देखे थे जो सपने,
      अब उनको सच करने का वक़्त आया !!

      इधर भो दौड़ा, उधर भी दौड़ा,
      हर एक दिशा में अपना कदम बढ़ाया !
      करना चाहा जो इस मन ने
      हर और अड़चनों से घिरा हुआ पाया !!

      जरुरत थी जब हमदर्दी की,
      देकर उलटे सीधा ज्ञान भरमाया !
      गैरो की बात क्या कीजे,
      अपनों ने भी जी भर के हमे सताया !!

      बेमानी थी ये दुनिया,
      इस महफ़िल में कुछ न कर पाया !
      देख हालत दुनिया की,
      अब हमको खुद पे ही रोना आया !!

      साहस बटोरकर जैसे ही,
      हमने फिर से अपना अगला कदम बढ़ाया !
      अनगिनत बंधनो की
      जंजीरो के घेरे से स्वंय को जकड़ा पाया !!

      भूल गया सब याद पुरानी,
      इस जीवन में कुछ न कर पाया !
      जिनकी खातिर खुद को भूला
      सबसे पहले उन्होंने ही मुर्ख बताया !!

      ऐसा उलझ जिंदगी से,
      आज तक उसकी पहेली न सुलझ पाया !
      कौन था, मै कौन हूँ,
      ढूंढ रहा हूँ खुद को जिंदगी में न जान पाया !!

      जी गया जिंदगी उमभर
      मगर जीना नही आया,,!
      पी गया जहर, अमृत जानकर,
      मगर पीने का ढंग नहीं आया..!!

      डी. के. निवातियाँ _________@@@

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