गुरुवार, 20 अगस्त 2015

गीत-शकुंतला तरार- अलगनी में टांग दिया

अलगनी में टांग दिया
अलगनी में टांग दिया जीवन की साँस को
धूल में उड़ा दिया यौवन की फांस को

1-सूपे से फटक रही धड़कन फट्टाक से
ढांपती झरोखे को नैनन कपाट से
सींके में लटकाया चाहत की आस को
मूसल से कूट दिया कोमल एहसास को

2- खूंटी में अरो दिया एक एक सपने को
कोलकी में धांद दिया चिमनी संग तपने को
शूल से चुभो दिया भावना की प्यास को
जाते में पीस लिया मादक मधुमास को

3-छानी में सूख रहे यौवन के फूल हैं
खपरों में जम रहे जो बेबसी के धूल हैं
आंसुओं से भिगोया है रिमझिम बरसात को
धुंध से सजाया है पूनम की रात को
शकुंतला तरार

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