जिंदगी के हादसे (ग़ज़ल)
                            हादसों   से   भरे  इस  जहान   में ,
                             जिंदगी  जिन हालातों  से गुज़रती  है. 
                          हर सु  बेचैनी , तड़प  और कई फिक्रें ,
                            कब  दो  घडी  सुकून  से  बैठती   है.  
                         क्या ,कब  ,कैसे ,क्यों, किसलिए ?
                           ज़हन  में सवालों  की झड़ी रहती है. 
                       पैरों तले  ज़मीं  नहीं ,आसमा है  दूर ,
                         सहारा  न मिले खुदा  का तो रोती है. 
                      एक हसीं  खवाब  जो  हो गया बेवफा ,
                        याद  में जिसके मेरी  रूह  तड़पती   है. 
                     जिंदगी  है बेमुरव्वत ,और बेवजह तो फिर ,
                       लाश की तरह  अनु  इसे क्यों  ढोती  है  ?    

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