शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

जिंदगी के हादसे (ग़ज़ल )

जिंदगी के हादसे (ग़ज़ल)

हादसों से भरे इस जहान में ,
जिंदगी जिन हालातों से गुज़रती है.

हर सु बेचैनी , तड़प और कई फिक्रें ,
कब दो घडी सुकून से बैठती है.

क्या ,कब ,कैसे ,क्यों, किसलिए ?
ज़हन में सवालों की झड़ी रहती है.

पैरों तले ज़मीं नहीं ,आसमा है दूर ,
सहारा न मिले खुदा का तो रोती है.

एक हसीं खवाब जो हो गया बेवफा ,
याद में जिसके मेरी रूह तड़पती है.

जिंदगी है बेमुरव्वत ,और बेवजह तो फिर ,
लाश की तरह अनु इसे क्यों ढोती है ?

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