मंगलवार, 11 अगस्त 2015

झांक ले गलेबान में ..........

झाँक ले गलेबान में…………

किस बात का तुझे है गुरूर
झाँक ले गलेबान में
जो उड़ रहा धरती से तू
..तू “नगण्य” है आसमान में

तू ही अकेला है नहीं
तुझसे बहुत है सरफिरे
उड़े धरती से मद में चूर
आकर वापस यहीं गिरे

तेरे सर के ऊपर जो
आसमान ये दिख रहा
वही इसमें उड़ पाते जिनके
पाँव ज़मी पर होते है
तेरे सर के ऊपर जो
चुनौतियां है दिख रही
इन्हे पार वही कर पाते जिनके
पाँव ज़मी पर होते है

एक गगन सारा सबका ये
ना कोई ऊचा और नीचा है
जब जब कोई उदा आसमा में
ज़मी वालो ने उसे खींचा है

मत रख आस तू इनाम का
मत रख आस तू सम्मान में
किस बात का तुझे है गुरूर
झांक ले गलेबान में

तुषार गौतम “नगण्य”

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