छोटे छोटे बच्चे देखो भूख से रो रहे है,
  बाप वहाँ भट्ठी में बैठे बोतल पी रहे है।
मजदूरी करके भी गर वो भूखे सो रहे है,
  माकन बनाने वाले झोपडी में रो रहे है।
बीबी बच्चों के कपडे चीथड़े हुए यहाँ पर,
  वहाँ  दाने के लिए पिता कपडे बुन रहे है।।
खाने को भी मिले नही गर  तो पढ़े कहाँ से भाई,
  कपडे भी न हो पास तो क्या नंगे विद्यालय जाए??
विद्यालय  में दाने कपडे दिये ही जा रहे हैं
  वो भी तो मास्टर साहब के पॉकेट में जा रहे है।
होटल में जाए बच्चे ,गिलास धो कर पैसे लाये
  पिता का सहारा बने उनको दारू जुटाए।
मजदूरी करके भी गर वो बच्चे को पढ़ाए,
  बेरोजगार हो जाए बच्चे,मजदूरी व्यर्थ ही जाए।
नन्हे से मासूम के पास जब पिता सिगरेट जलाए,
  बड़े होकर वो नन्हा बच्चा पिता का बाप कहलाए।
बदलो ये सारी मानसिकता , खुद को इंसान बनाओ,
  आधे पेट भी मिले भोजन तो भी विद्यालय जाओ।
मेरे देश के बच्चे तुम अपनी पहचान बनाओ,
  जरुरत हो अगर तो मातपिता पर भी विरोध जताओ।
मेरे देश के बच्चों तुम अपना भविष्य बनाओ।।
  मेरी कलम से
  रौशनी कुमारी 

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