मौत के बाद,
  कविओं का क़द्र,
  करता है ज़माना I
  रोकर क़ब्र ये,
  कहता है फ़साना I
मरण के बाद, स्मरण सभा,
  और तस्वीर पर दो फूल I
  क्या कवि बनना है,
  तक़दीर का भूल ?
मत रो क़ब्र पर हमारे !
  आँसूओं के तुम्हारे,
  नही है तलबगार हम I
  हमे दो बस वह प्यार,
  जिसके है हक़दार हम !
-पार्थ
Read Complete Poem/Kavya Here अज्ञात कवि
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