बुधवार, 22 जुलाई 2015

क्रंदन

लिखने को बैठा हूँ कब से ,सोच रहा हूँ क्या लिख दूँ
भूखे प्यासों के लब लिख दूँ या खुद को ही अब लिख दूँ I
उतरा चंदा जमीन पे लिख दूँ , या सूरज पे जाके लिख दूँ
अपनी नाकारी लिख दूँ या फिर तेरी शाबासी लिख दूँ I
नौकरशाही पे लिख दूँ या भूख से रोता बचपन लिख दूँ
गद्दारो पे कलम चलाऊँ, या गद्दारों का चमचा लिख दूँ I
नेताओ की जुबान लिखूं या ,देश का रोता चेहरा लिख दूँ
लुटी बहन की इज्जत लिख दूँ ,या रावण की लंका लिख दूँ I
अन्तः मन की आवाज लिखूं या बंद लब्जो की माला लिख दूँ
झर झर गिरते आंशू लिख दूँ या हशी की परिभासाः लिख दूँ
चका चौंध आँखों की लिख दूँ ,या जुगुनू का टिमटिमाना लिख दूँ
छत से बेबशी का टपकना लिख दूँ या सावान का यौवन लिख दूँ
कलम बता अब तू ही मुझको, तुझसे अब क्या क्या लिख दूँ…… आलोक सिंह

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