शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

मिलन की रात

दिन ढल गया है इक बार फिर से
होगा उनका दीदार इक बार फिर से

चकोर चाँद के लिए है बेकरार फिर से
चाँद भी चांदनी संग तैयार है फिर से

कई मुद्दतों के बाद ये रात आई है फिर से
शरद रातो ने मिलन की आस जगाई ह फिर से

बरसो से दबी तम्मना होगी पूरी फिर से
नहीं रहेगी ये कहानी अब अधूरी फिर से

जमीं आसमा का मिलन क्षितिज पर होगा फिर से
ये भोर तू जल्दी मत होना फिर से

जमीं आसमा का मिलन क्षितिज पर होगा फिर से
ये भोर तू जल्दी मत होना फिर से

इस मिलन की रात के बाद लम्बी जुदाई न हो फिर से
दिल ने ये दुआ मांगी है एक बार फिर से

बरसो से सोय दिल में आज अरमान कोई जगायेगा फिर से
इतिहास एक बार अपने आप को दोहराएगा फिर से

हितेश कुमार शर्मा

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