दिन  ढल  गया  है   इक  बार  फिर  से
  होगा  उनका  दीदार   इक   बार   फिर  से 
चकोर  चाँद  के  लिए  है  बेकरार  फिर  से
  चाँद  भी  चांदनी  संग  तैयार   है  फिर  से 
कई  मुद्दतों  के  बाद  ये  रात  आई  है  फिर  से
  शरद रातो ने मिलन की आस जगाई ह फिर से 
बरसो  से  दबी  तम्मना  होगी  पूरी  फिर  से
  नहीं  रहेगी  ये  कहानी  अब  अधूरी  फिर  से 
जमीं आसमा का मिलन क्षितिज पर होगा फिर  से
  ये  भोर  तू  जल्दी  मत  होना  फिर  से 
जमीं आसमा का मिलन क्षितिज पर होगा फिर से
  ये  भोर  तू  जल्दी  मत  होना  फिर  से 
इस मिलन की रात के बाद लम्बी जुदाई न हो फिर से
  दिल  ने  ये  दुआ  मांगी  है  एक  बार  फिर  से 
बरसो से सोय दिल में आज अरमान कोई जगायेगा फिर से
  इतिहास  एक  बार  अपने  आप  को  दोहराएगा  फिर  से 
हितेश कुमार शर्मा
Read Complete Poem/Kavya Here मिलन की रात
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें