गुरुवार, 30 जुलाई 2015

यकीन आता नहीं

अँधेरे में कोई खुद को तलाशता नहीं
हवा खुद आती है कोई लाता नहीं
आसमान पर चमकती बिजली
असहाय है ,कड़क के गिरती है
कोई संभालता नहीं |
धुएं की धुंध में कुछ सामने नजर आता नहीं
दुनिया के हर रंग से उठ चूका है यकीन आज
अब तो इंसान को खुद पर यकीन आता नहीं
जहर हाथो में लेकिन कायर मर पाता नहीं
जिंदगी से है खौफ , मौत से यारी करता नहीं |
जिंदगी क्या है पूछता फिरता है कनक
वह नादान जो खुद को समझ पाता नहीं |

कनक श्रीवास्तवा

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