तीनो बंदरो से बोलो की वो अब बदल जाएं भी
  वक़्त गया है बदल बोलो सुधर जाएं भी
  अब नही होगा कुछ भी अगर ऐशे ही शांत रहे
  ग़ांधी तू भी उठा लाठी तो मंजर बदल जाएं भी
  बुरा ना देखो मगर देखो तो बोलो भी
  बुरा ना सुनो अगर सुनो तो बोलो भी
  बुरा ना कहो ,अगर कोई कहे तो रोको भी
  एक गाल पे चपत लगाये तो पूछों भी
  कब तलक सराफ़त का मुखौटा पहनोगे भी
  देख लो तुम भी तो, सरमाओगे भी
  हाय ये क्या हो रहा, सोच के घबराओगे भी
  था कौन सही जिसने मारा तुम्हे या तुम खुद
  हो रही दोनों पे राजनीति ,बताओ तुम भी…………. आलोक सिंह
बुधवार, 22 जुलाई 2015
"ग़ांधी के बंदर"
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