शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

ईद आ गई

गले मिलकर मिटा लो फासले ईद आ गई।
मोहब्बत के शुरू हों सिलसिले ईद आ गई।

नए ख्याल नई ख्वाहिश हसीं ख्वाब आँखों में
खुशियों के सुहाने सफर पे चलें ईद आ गई

बढ़ जाये भाईचारा,बढ़े सुख-शांति,बरक्कत
दुआ है कोई भी न रहे अकेले ईद आ गई।

तल्खी से तबस्सुम को भी रोते हुए देखा
नफरत की आग में क्यूँ जलें ईद आ गई।

ईद की शाम भी दीवाली की तरह हो रौशन
जुदा रंगो के,चलें संग काफिले ईद आ गई।

मखमसा न हो दरमियाँ मिट जाएँ दूरियाँ

न सियासत का कोई खेल खेले ईद आ गई।

अनजान हैं क्या होगा मकसूम का मकसद
जी लें हँसकर जो भी लम्हे मिले ईद आ गई।

वैभव”विशेष”

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